भारत टाइम्स का करैक्टर ढीला है भाई साहिब उड़ाएं गुलछर्रे तो रासलीला है। हम शरेआम भर लें मुस्कान तो करैक्टर ढीला है। वो छलकाएं जाम हर इस मयखाने में, वो लचकाएं कमर हर उस पायदान पे, किसी ने पूछा तक नहीं, बोले समाज ‘सेवक आएला है’। झिझकती पलकें हमारी उठीं ऊपर तो करैक्टर ढीला है। भाई साहिब उड़ाएं गुलछर्रे तो ...
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